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Tuesday, December 21, 2010

!!! ढोला-मारू - एक सन्दर्भ !!!

सुपनेहू प्रीतम मन्ने मिलिया, हूँ गले लगी गयी..
डरपतां पलका ना खोली, मति सुपनो हुई जाई...!!

डाक्टर शार्लोट वोदविल ,डी. लिट., पेरिस, का “ढोला-मारू” फ्रेंच में अनूदित होकर छप चूका है. इस विद्वान ने फ्रेंच में एक विस्तृत भूमिका दी है..उन्होंने भूमिका में सम्भावना प्रकट की है के ढोला-मारू की कहानी प्रारंभ में जाटों की कथा रही होगी.उन्होंने ये दिखाया है के इस काव्य में जाटों की अनेक परम्परायें सुरक्षित है.

संदर्भ ग्रन्थ-
मध्ययुगीन प्रेमव्याख्यान
डॉ.श्याम मनोहर पाण्डेय
पेज नंबर- १२४