सुपनेहू प्रीतम मन्ने मिलिया, हूँ गले लगी गयी..
डरपतां पलका ना खोली, मति सुपनो हुई जाई...!!
डाक्टर शार्लोट वोदविल ,डी. लिट., पेरिस, का “ढोला-मारू” फ्रेंच में अनूदित होकर छप चूका है. इस विद्वान ने फ्रेंच में एक विस्तृत भूमिका दी है..उन्होंने भूमिका में सम्भावना प्रकट की है के ढोला-मारू की कहानी प्रारंभ में जाटों की कथा रही होगी.उन्होंने ये दिखाया है के इस काव्य में जाटों की अनेक परम्परायें सुरक्षित है.
संदर्भ ग्रन्थ-
मध्ययुगीन प्रेमव्याख्यान
डॉ.श्याम मनोहर पाण्डेय
पेज नंबर- १२४
atti uttam
ReplyDeleteसिया चौधरी जी
ReplyDeleteघणी खम्मा !
मोकळा रामा श्यामा !
अब कुछ नया भी पोस्ट करें , कृपया ।
~*~आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं और मंगलकामनाएं !~*~
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आने से बहुत रोचक है आपका ब्लॉग बस इसी तह लिखते रहिये येही दुआ है मेरी इश्वर से
ReplyDeleteआपके पास तो साया की बहुत कमी होगी पर मैं आप से गुजारिश करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे भी पधारे
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
बहुत बहुत आभार अनिल जी...राजेंद्र जी...दिनेश जी...:)
ReplyDeleteआप सबके आशीर्वाद से बहुत जल्दी ही में कुछ नया पोस्ट करुँगी...:)
बढ़िया प्रस्तुति. बधाई।
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com